मै एक मध्य-वर्ग से हूँ और मै खुश रहता हूँ | लोग कहते है कि भारत में मध्य-वर्ग सबसे दुखी है और उनमें भी नौकरी-पेशा सबसे ज्यादा दुखी है | मै नौकरी-पेशा हूँ पर फिर भी खुश रहता हूँ |
लोग मुझसे पूछते है कि तुम इतना खुश कैसे रह लेते हो | मै इनको यह जबाब देता हूँ कि दुखी होने का समय ही नहीं है मेरे पास | में एक बड़े शहर बेंगलोर में छोटा-सा कमरा लेकर रहता हूँ | सुबह 10 बजे की नौकरी पर 8:30 निकल जाता हूँ , 90 मिनट ऑफिस जाने में लगता है तो उसमे जी भरकर मोबाइल चला लेता हूँ | दस से सात ताबड़तोड़ मेहनत करता हूँ , कभी-कभी नौ बजे तक भी करता हूँ | वापस घर आने में फिर से 90 मिनट लगते है तो एक और बार मोबाइल चला लिया जाता है | मेरी तो यही कोशिश रहती है कि जो भी नया सोशल मीडिया पर आया है, उसको जल्द से जल्द देख लूँ | लोग बोलते है कि एक मिनट में यूट्यूब पर सालो के वीडियो डल जाते है और मुझे लगता है कि मै यह सब कैसे देखूंगा | मेरे पास समय कहाँ है ?
8:30 पर घर वापस आता हूँ, खाना खाता हूँ, घरवालों से बात करता हूँ, दोस्तों से बात करता हूँ | इतने में 11 बज जाते है और मै सो जाता हूँ , कल ऑफिस भी जाना है | दुखी होने का समय कहाँ है ?
दोस्त मुझे कभी-कभी बोलते है कि तुम ऑफिस आने-जाने में बड़ा समय बर्बाद करते हो | उस समय तुम कुछ अच्छा कर सकते हो | मै बोलता हूँ कि ठीक बात है पर ऑफिस आने-जाने का समय कैसे बचाऊ ? तो एक ने बोल गाड़ी ले लो |
उसने अपनी समझ से सही बोला पर उसको मेरी आर्थिक हालत का पता नहीं है | मै महीने के 50,000 कमाता हूँ , जो सालाना 6 लाख होते है | उनमे से सीधे-सीधे 50,000 LIC की पालिसी और 50,000 बाकी बचत में चला जाता है | इसके बाद सरकार 1 लाख टैक्स ले लेती है | बचता है 4 लाख | उसमे से महीने का 8 हज़ार घर का किराया और 4 हज़ार खाने-पीने-सफाई का | सालाना 1.5 लाख के आस-पास | उस पर 10-15 हज़ार घर भी पहुंचाने होते है हर महीने | मम्मी-पापा का ख़र्च कैसे चले ? ले-देकर मेरे पास 1 लाख रूपए बचता है सालाना | और अभी मैंने घूमने का, इंटरनेट का खर्चा नहीं जोड़ा है | पेट्रोल 100 के पार है | क्या आपको लगता है कि मुझे गाड़ी लेनी चाहिए ?
तो फिर एक दूसरा दोस्त बोलता है कि नौकरी बदल लूँ | यह भी ठीक उपाय है पर तैयारी करने का समय कहाँ है ? माना कि सुबह-शाम में आते-जाते तैयारी कर सकता हूँ पर बस मे बैठने तक की जगह नहीं होती , किताब कैसे खोलू ? उस पर भी ऑफिस का कोई ना कोई साथ में होता है , उनके सामने पढ़ाई करना ठीक नहीं | हाँ , एक तरीका है कि मै मोबाइल में पढू जो एक समय मैंने किया था पर अगर तुम्हारी नई नौकरी भी उसी क्षेत्र में हो जहां पर यह नौकरी थी फिर फर्क क्या पड़ा ? यही आना-जाना , यही कार्यक्रम वहाँ पर भी होगा तो फिर क्यों मै नौकरी बदलू ?
इस पर एक तीसरे दोस्त ने बोला कि जब मेट्रो बन जाये तो शायद तुम यह कर सको | यह भी ठीक बात है और यही सबसे अच्छा उपाय है | मै उत्सुकता से मेट्रो शुरू होने का इंतज़ार कर रहा हूँ | दरअसल , मै तो तीन सालो से मेट्रो शुरू होने का इंतज़ार कर रहा हूँ | मै सारी योजनाओं में सरकार का पूरा साथ देता हूँ | सरकार ने बोला की पुराने नोट बंद हो गए है, इससे काला धन वापस आएगा | मैंने माना और घंटो ATM की लाइन में खड़ा रहा | मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा - मै तो ये देश के लिए कर रहा हूँ | सरकार ने बोला थाली पीटो, इससे कोविड जायेगा | मैंने 1 घंटे तक थाली पीटी , क्या करता ? बेरोज़गार ही था | तो मेट्रो का उपाय मुझे सही लगा | यह जरूर है कि इंतज़ार करना पड़ेगा पर अच्छे कामो में तो समय लगता ही है |
कभी-कभी मेरे ऑफिस के दोस्त कहते है कि टैक्स देने का कोई फायदा नहीं है , कुछ विकास तो दिख नहीं रहा | मेँ उनको मन-ही-मन गाली देता हूँ और सोचता हूँ कि हम अपने देश के लिए इतना तो कर ही सकते है | सीमा पर खड़े जवानो की इतनी मदद तो कर ही सकते है , आखिर उन्होंने ही पाकिस्तान-चीन को रोक रखा है , अन्यथा भारत का नामो-निशान तक नहीं बचता | और गुजरात में जो वल्लभभाई की जो मूर्ति लगाई है , उससे कितना पैसा आएगा देश में | ऐसी और मुर्तिया लगानी चाहिए |
तो यह मेरी ज़िन्दगी का सार है | मै ऑफिस जाता हूँ , खाता-पीता हूँ, मोबाइल चलता हूँ और खुश रहता हूँ | दुःखी होने का समय कहाँ है?
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